में समस्त साजर-भाव के हे भारत भूमि के भोले-भाले भले मानुसों के घर का बजट बिगाड़ने वाले, उच्च बाजार-भाव के मामले में समस्त सब्जियों को पछाड़ने वाले, निर्धन और मध्यवर्गीय जनता की जमी-जमाई गृहस्थी को हिलाने वाले, महंगाई की पीठ पर बैठकर दहाड़ने वाले, अपने दिव्य छिलकायित स्वरूप के ही समान आम आदमी की परत-दर-परत बखिया उधेड़ने वाले और तमाम तरकारियों के तन-बदन पर अपनी दबंग हैसियत का झंडा गाड़ने वाले, बू-धारक, जेब मारक, चमत्कार कारक, हे प्याज महाराज! तुम्हें अनंत बार नमस्कार है। बारंबार नमस्कार है। हे महाराज! जो रिश्ता एक मुनाफाखोर का ब्याज से, आगरा का ताज से, अस्पताल का इलाज से, गौरैया का बाज से, आसमान का हवाई जहाज से, कार का गैराज से, नदियों का बैराज से, गवैये का रियाज से, मांझे का पतंगबाज से, ब्यूटी पार्लर का से, चूहे का अनाज से, नवयौवना का लोकलाज से, दशानन का का लोकलाज स, दशानन का रामराज से और आत्मकेंद्रित व्यक्ति का समाज से है, वही रिश्ता एक आम आदमी का प्याज से है। इन सहज संबंधों के ध्वस्तकारक, नित्य नवल उच्च दर विहारक, हृदयविदारक हे प्याज महाराज! तुम्हें असंख्य बार नमस्कार है। बारंबार नमस्कार है। हे अपना नाम स्वयमेव शतकवीर धरने वाले, महंगाई के सभी पुराने कीर्तिमानों को तहस-नहस कर नया रिकॉर्ड कायम करने वाले, दूर रहकर हाथ लगाए और छीले बिना ही हर किसी की आंख में आंसू भरने वाले, किसी चतुर-सुजान नेता की मानिंद आज की तारीख में कल के किए हुए अपने ही वादे से मुकरने वाले, हद की सरहद के पार के भी उस पार से गजरने वाले अपने लच्छेदार शरीर के माफिक हमारी जेबों में पड़े हुए नोटों को लच्छा-लच्छा कुतरने वाले और बाजार की कीमतों के एवरेस्ट पर चढ़कर नीचे न उतरने वाले, सलाद संहारक, उधार कारक, गृहदशा बिगाड़क, हे प्याज महाराज! तुम्हें अनगिनत बार नमस्कार है। बारंबार नमस्कार है। हे एक गरीब ने तुम्हें हाथ लगाना चाहा, उस बिजला जसा करट चाहा, उसे बिजली जैसा करंट लगा। एक मजदूर ने दुकानदार से तुम्हारा भाव क्या पूछ लिया, उस सब्जी वाले के चरणों में गिरकर वहीं पर संज्ञाशून्य हो गया। टमाटर और अन्य फल-सब्जियां निरंतर तुम्हारा पीछा कर रही हैं, मगर तुम्हें छू पाना तो दूर, वे तुम्हारे भाव के आसपास तक पहुंच पाने को तरस रही हैं। तुमको जिस किसान ने अपना खून-पसीना एक समझकर रात-दिन की कडी मेहनत से उगाया, तुमने उसके भी होंठों से लगने से इन्कार कर दिया। बेचारे सेब तक को सलाद के रूप में कटना पड़ रहा है और तुम दूर खड़े होकर अट्टहास कर रहे हो। किचन के उपहासक, सब्जी बाजार और मंडी के विकट विनाशक, हे प्याज महाराज! तुम्हें कोटि-कोटि नमस्कार है। हे देव, तुम्हारे अनेक रूप हैं। आयात में भी तुम हो। निर्यात में भी तुम हो। गंध में भी तुम ही। संबंध में भी तुम ही हो। तुम बारहमासी हो। तुम नासिक से नासिका तक के निवासी हो। धरा के गर्भ से, यानी पाताल से निकलकर सीधे आकाश तक पहुंचने की दिव्यशक्ति तुम्हारी सौ रुपये में है. तो कहीं तराज के सौ ग्राम क बाट म ग्राम के बांट में है। जमाखोरों के आनंद प्रदायक, बाजार के अधिनायक, हे प्याज महाराज! तुम्हें सहस्न बार नमस्कार है। हे सब्जियों के अधीश्वर, हम तुम्हारी शरण में आए हैं। हमारी ढीली होती जेब पर अपनी कृपा। हमारे घर पधारो और हमें सस्ती उपलब्धि का आशीर्वाद प्रदान करो। तुम्हारी महिमा गाने की क्षमता हमारी सामर्थय से बाहर है। तुम इन दिनों सर्वत्र समाचार में हो। आजकल तम ही जन-जन की जिह्वा पर विराजमान हो। अब आओ और हमारी जिह्वा पर साक्षात अपने चरण धरो। हे गंध देव, हम तुम्हारी सौगंध खाते हैं कि हमारी रसोई का एकमात्र अवलंब तुम ही हो। तुम्हारे बिना स्वाद की कल्पना भी निरर्थक है। तुम रोटी के साथ गठबंधन कर दीन-दखियों को क्षधातप्ति देने वाले अनादि देव हो। तुम बर्गर आदि फास्ट फूड के मध्य अवस्थित होकर युवा पीढ़ी को अनंत ऊर्जा प्रदान करने वाली महाशक्तियों में वरेण्य हो। शंख स्वरूप, शाक-सब्जियों के भूप, दोप्याजा सुशोभक, छौंक बघारक, कर्णशूल हारक हे प्याज देव! तुम्हें शत-शत नमस्कार है। आपकी महिमा इतनी बढ़ गई है कि हीरों के शहर में भी चोर हीरे लूटने के बजाय आपसे भरी एक बोरी चुराकर भागने में ही ज्यादा भलाई समझने लगे हैं।
प्याज पर व्यंग्यः हे सभी सब्जियों के अधीश्वर, ढीली होती जेब पर कृपा करो और जायके को तृप्त करो