हमला के वक्त संभाल लिया था मोर्चा भारत-पाकिस्तान को युद्ध के मुहाने पर खड़ा कर देने वाले पुलवामा हमले से पुरा देश हिल गया था। लेकिन उस काफिले में शामिल महिला सिपाहियों का मनोबल कम नहीं हुआ। हमले के - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - वक्त वो ना भयभीत हुई और ना ही हालात के आगे घुटने टेकेबल्कि हर स्थिति का सामना करने के लिए मोर्चा संभाल लिया थाजबकि उनके हथियार भी उनके पास नहीं थेसीआरपीएफ की महिला बटालियान की पच्चीस साल की सिपाही स्वाति सिंह गौर भी 78 वाहनों के काफिले का हिस्सा थीस्वाति कहती हैं हमले के बाद भी उनका हौसला बुलंदी पर हैइसका श्रेय वह उन्हें दी जाने वाले ट्रेनिंग को देती है। उन्हें ऐसी ट्रेनिंग दी जाती है कि वो ना सिर्फ मुश्किल से मुश्किल हालात का आसानी से सामना कर सकें, बल्कि उससे बाहर भी निकल सकें। सीआरपीएफ जवानों की हत्या का लेगी बदला स्वाति कहती है जिस वक्त हमला हुआ वह बहुत मुश्किल घड़ी थी। लेकिन उन्होंने ने हिम्मत नहीं हारी और ऐसी स्थिति में कार्रवाई के जो मानक हैं उसको अपनाया। हमले का बदला लेने की आग इनके सीने में भी धधक रही है। स्वाति का कहना है कि अगर मौका मिले तो वह सीआरपीएफ जवानों की हत्या का बदला लेगी। हालांकि, पुलवामा हमले के बाद सीआरपीएफ जवानों के परिवारों में डर पैदा हो गया है, लेकिन देश सेवा का जज्बा और गौरव इतना ऊंचा है कि डर उसके नीचे दब कर रह जाता है। सीआरपीएफ में छह महिला बटालियन सीआरपीएफ में छह महिला बटालियन हैं। इनमें से चार जम्मू- कश्मीर में तैनात हैं। इन बटालियनों में देश के लगभग हर हिस्से की महिलाएं शामिल हैं। उन्हें पेशेवर से लेकर व्यक्तिगत मोर्चे पर तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, लेकिन वर्दी में ऐसी ताकत है जो उन्हें एकजुट रखती है।महिला फौजियों को दो मोर्चों पर जूझना पडता है। नौकरी की जिम्मेदारियों को निभाने के साथ ही घर के काम में भी संतुलन बनाना पडता है और यह काम आसान भी नहीं है। यहां भी देश सेवा का जज्बा उनकी मदद करता है और वो हंसते-हंसते यह काम भी आसानी से कर जाती हैं। पति और पत्नी दोनों ही सीआरपीएफ में दोनों 73वीं बटालियन की असिस्टेंट कमांडेंट नीरा चौधरी का कहना है कि चाहें फौज की नौकरी हो या घर-गृहस्थी का काम दोनों को ही महिलाएं बखूबी निभाती हैं। लेकिन इसमें हर महिला फौजी के परिवार का भी योगदान कम नहीं है। चौधरी कहती हैं कि बिना परिवार के सहयोग के महिला फौजियों के लिए दोनों मोर्चों पर फतह हासिल करना आसान नहीं है। सीआरपीएफ की 88वीं बटालियन की सैनिक की स्थिति से इसे आसानी से समझा जा सकता है। पति और पत्नी दोनों ही सीआरपीएफ में हैं। सिपाही कहती है कि उनके पति की तैनाती श्रीनगर में है। एक फौज में होते हुए भी उनकी मुलाकात घर लौटने पर ही हो पाती है। ड्यूटी के दौरान पति कहीं और मोर्चा संभालता है तो पत्नी कहीं और। पथराव से लेकर चेकिंग तक का करना पड़ता है सामना हर हालात से निपटने के लिए महिला फौजियों को भी मानसिक और शारीरिक रूप से फिट रहना बहुत जरूरी है। सीआरपीएफ में रहकर पिछले 25 वर्षों से देश की सेवा करने वाली राजस्थान की नीलम यादव कहती हैं कि मानसिक और शारीरिक रूप से फिट रहना आसान नहीं है। पर ट्रेनिंग की वजह से वह इसमें भी सफल रहती हैं। नीलम का कहना है कि कश्मीर में तैनाती के लिए तो ट्रेनिंग की बहुत ही अहम भूमिका है। कश्मीर में उन्हें पथराव से लेकर चेकिंग तक कई तरह की विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन वो अपनी ट्रेनिंग के चलते हर हालात से निपटने में सक्षम होती हैं।सीआरपीएफ की महिला |बटालियन ने भी साबित कर दिया है कि वो किसी भी मायने में पुरुष बटालियनों से कम नहीं हैं। उनकी बहादुरी और जीवटता को देखते हए ही उन्हें सरकारी इमारतों से लेकर धार्मिक स्थलों |जैसे अहम स्थानों की सरक्षा में लगाया जाता है। इन स्थलों पर ! अचानक हमलों का खतरा सबसे ज्यादा रहता है, लेकिन ये जांबाज महिलाएं हर खतरे को नाकाम बनाने के लिए हर समय चौकन्ना रहते हुए देश को महफूज रखे हैं। - - - - - - - - - - - -